thisandthatandmuse
Thursday, March 29, 2012
अब, क्या लिखूं ?
सूख गयी नमी शिशिर की
रह गयी बस बन कर
एक अध् लिखा पन्ना
-- कुछ भरा --
मेरी कल्पना की छींटों से
अब, जब आ खडा
ग्रीषम ऋतू
मेरे कवित्य के द्वार
अब, जब सूरज का बढता तेज
छलकता मुझ में, बन तेज़ाब की सियाही
अब, क्या लिखूं ?
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment