Wednesday, July 20, 2011

कहीं दूर जब दिन ढल जाये

कहीं दूर जब दिन ढल जाये /
साँझ की दुल्हन बदन चुराए /
चुपके से आये /
मेरे ख्यालों के आँगन में /
कोई सपनों के दीप जलाए...

कभी यूँ ही जब हुई बोझल साँसें /
भर आई बैठे बैठे जब यूँ ही आँखें /
कभी मचल के, प्यार से चल के /

छुए कोई मुझे पर, नज़र न आये /
नज़र न आये...


कहीं दूर जब दिन ढल जाये /
साँझ की दुल्हन बदन चुराए /
चुपके से आये /
मेरे ख्यालों के आँगन में /
कोई सपनों के दीप जलाए...

कहीं तो यह दिल कभी मिल नहीं पाते /

कहीं पे निकल आये जन्मों के नाते /
थमी थी उलझन बैरी अपना मन /
अपना ही होके सहे दर्द पराये /

कहीं दूर जब दिन ढल जाये /
साँझ की दुल्हन बदन चुराए /
चुपके से आये /

मेरे ख्यालों के आँगन में /
कोई सपनों के दीप जलाए...

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Hello and welcome! I am someone who is passionate about poetry and motorcycling and I read and write a lot (writing, for me has been a calling, a release and a career). My debut collection of English poems, "Moving On" was published by Coucal Books in December 2009. It can be ordered here My second poetry collection, Ink Dries can be ordered here Leave a comment or do write to me at ahighwayman(at)gmail(dot)com.

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